जीवन क्या है क्या केवल सांस लेना भोजन को पचाना मलमूत्रादि वेगों का त्याग करना शरीर रचना और निर्माण के अन्य कार्यों का होना ही जीवन की परिभाषा का पूरक है क्या केवल विचार करना योजनाएं बनाना विमर्श करना नाम।यश आदि के लिए प्रयत्न करना ही जीवन की सिद्धि का बोधक है
नही जो कर्म के जटिल बन्धनों से अपने को मुक्त करता है वह पूर्ण और विकार रहित शान्ति परमानंद ज्ञान और अमरत्व को प्राप्त होता है। नित्य सुख और परम शान्ति ईश्वर.प्राप्ति से ही प्राप्त की जा सकती है। यही कारण है कि विचारवान बुद्धिमान साधक ईश्वर.प्राप्ति की चेष्टा करते हैं। ईश्वर की प्राप्ति हो जाने पर जन्म.मरण का चक्कर तथा उसके सहकारी दुःखों का नाश हो जाता है। पाचों इन्द्रिया मनुष्य को हर दम भ्रमित करती रहती हैं। अपनी आखें खोलो। विवेक.बिद्धि से काम लो। ईश्वर के रहस्यों को समझो। भगवान् की सर्वव्यापकता की अनुभूति करो। उसकी निकटता का अनुभव करो। वह आपकी हृदय.गुहा में सर्वदा विराजमान है।
ईश्वर उसकी सत्ता भूत वर्तमान और भविष्य में निरन्तर रहती है।
जगत् की परिवर्तनशील घटनाओं के मध्य वही एक अपरिवर्तनशील और निर्विकार है। संसार की सभी नश्वर वस्तुओं के मध्य वही अविनश्वर है। यह विश्व दीर्घकालीन स्वप्न के समान है। यह माया की बाजीगरी है। वह मायापति है। वह स्वतन्त्र है।