Friday 29 January 2010

सच्चा जीवन

जीवन क्या है क्या केवल सांस लेना भोजन को पचाना मलमूत्रादि वेगों का त्याग करना शरीर रचना और निर्माण के अन्य कार्यों का होना ही जीवन की परिभाषा का पूरक है क्या केवल विचार करना योजनाएं बनाना विमर्श करना नाम।यश आदि के लिए प्रयत्न करना ही जीवन की सिद्धि का बोधक है

नही जो कर्म के जटिल बन्धनों से अपने को मुक्त करता है वह पूर्ण और विकार रहित शान्ति परमानंद ज्ञान और अमरत्व को प्राप्त होता है। नित्य सुख और परम शान्ति ईश्वर.प्राप्ति से ही प्राप्त की जा सकती है। यही कारण है कि विचारवान बुद्धिमान साधक ईश्वर.प्राप्ति की चेष्टा करते हैं। ईश्वर की प्राप्ति हो जाने पर जन्म.मरण का चक्कर तथा उसके सहकारी दुःखों का नाश हो जाता है। पाचों इन्द्रिया मनुष्य को हर दम भ्रमित करती रहती हैं। अपनी आखें खोलो। विवेक.बिद्धि से काम लो। ईश्वर के रहस्यों को समझो। भगवान् की सर्वव्यापकता की अनुभूति करो। उसकी निकटता का अनुभव करो। वह आपकी हृदय.गुहा में सर्वदा विराजमान है।
ईश्वर उसकी सत्ता भूत वर्तमान और भविष्य में निरन्तर रहती है।
जगत् की परिवर्तनशील घटनाओं के मध्य वही एक अपरिवर्तनशील और निर्विकार है। संसार की सभी नश्वर वस्तुओं के मध्य वही अविनश्वर है। यह विश्व दीर्घकालीन स्वप्न के समान है। यह माया की बाजीगरी है। वह मायापति है। वह स्वतन्त्र है।

Thursday 28 January 2010

भौतिकता और मनुष्य

आज का मनुष्य भौतिक वादी है । वह इस भाग दौड की दुनिया मे ऐसा भागा जा रहा है कि वह अपने सारे रिश्ते नाते भूल गया है । सिर्फ पैसा ही उसका मकसद है । निःस्देह आज विज्ञान ने काफी उन्नति की है विज्ञान ने हमारे लिए क्या किया हैघ् निस्संदेह इसने भौतिक धरात्तल पर ज्ञान के भण्डार को बढ़ाया है। परन्तुए यह ज्ञानए आत्मज्ञान की तुलना में मूल्यहीन मात्र है। सभी विज्ञान आत्मज्ञान पर आधारित हैं। हम विज्ञान और विज्ञानिकों के आभारी हैंए जो वर्षों तक बंद कमरों में बैठकर नई खोजों और अविष्कारों के लिए पूर्ण तन्मयता से कार्य करते हैं। इनसे हमें सुख.साधन प्राप्त होते हैं। लेकिन इन्होंने जीवन.यापन महंगा और विलासपूर्ण बना दिया है। मनुष्य अब अधिक विचलित है। आज की विलासिता के साधन कल की आवश्यकता बन जाते हैं। जीवन.यापन का स्तर बहुत ऊঁचा उठ गया है। कर्मचारी और अधिकारी जरुरतें पूरी करने के लिए झूठ बोलने और रिश्वत लेने से नहीं झिझकते।

Wednesday 27 January 2010

शिक्षा

शिक्षा का बहुत ही महत्व है । लेकिन इसके साथ ही गुरू का महत्व उससे ज्यादा है । गुरू ही है जो हमे अन्धकार से उजाले की ओर ले जाता है ं। शिक्षा ग्रहण करने मे किसी प्रकार का भेद भाव नही करना चाहिए । गुरू की कोई जाति नही होती है ं। प्रकृति मे प्रत्येक जीव जन्तु से हमे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए । जो जाति पँाति के चक्कर मे पड गया वो शिक्षा ग्रहण नही कर सकता ।
कहते है कि
उत्तम विद्या लीजिएए यद्यपि नीच पे होय। पड़ो अपावन ठोर मेंए कंचन तजै न कोय।

वाणी

मनुष्य की वाणी का बहुत प्रभाव होता है । मीठी वाणी से सभी लोग प्रभावित हो जाते है। वाणी से ही मनुष्य की सही पहचान होती है । एक संत ने कहा है कि
मधुर बचन ते जात मिटए उत्तम जन अभिमान।
तनिक सीत जल सो मिटैए जैसे दूध.उफान।।